मैं नहीं सुन रहा हूँ संतुलन के विघटन को लेकिन, मेरे समूचेपन में संतुलन रखने का अंतरंग सौंदर्य तुझमें है।
हिंदी समय में मार्तिन हरिदत्त लछमन श्रीनिवासी की रचनाएँ